रामचरितमानस: संकटों से मुक्ति के लिए चमत्कारी चौपाइयाँ
- Admin 21
- 08 Oct, 2024
रामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जपसे ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है। प्रयास तो कर सकते है। ईश्वर की आराधना ही होगी।
1. रक्षा के लिए मामभिरक्षक रघुकुल नायक | घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||
2. वपत्ति दूर करने के लिए राजिव नयन धरे धनु सायक | भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||
3. सहायता के लिए मोरे हित हरि सम नहि कोऊ | एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||
4. सब काम बनाने के लिए वंदौ बाल रुप सोई रामू | सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||
5. वश मे करने के लिए सुमिर पवन सुत पावन नामू | अपने वश कर राखे राम ||
6. संकट से बचने के लिए दीन दयालु विरद संभारी | हरहु नाथ मम संकट भारी ||
7. विघ्न विनाश के लिए सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही | राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||
8. रोग विनाश के लिए राम कृपा नाशहि सव रोगा | जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||
9. ज्वार ताप दूर करने के लिए दैहिक दैविक भोतिक तापा | राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||
10. दुःख नाश के लिए राम भक्ति मणि उस बस जाके | दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||
11. खोई चीज पाने के लिए गई बहोरि गरीब नेवाजू | सरल सबल साहिब रघुराजू ||
12. अनुराग बढाने के लिए सीता राम चरण रत मोरे | अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||
13. घर मे सुख लाने के लिए जै सकाम नर सुनहि जे गावहि | सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||
14. सुधार करने के लिए मोहि सुधारहि सोई सब भाँती | जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||
15. विद्या पाने के लिए गुरू गृह पढन गए रघुराई | अल्प काल विधा सब आई ||
16. सरस्वती निवास के लिए जेहि पर कृपा करहि जन जानी | कवि उर अजिर नचावहि बानी ||
17. निर्मल बुद्धि के लिए ताके युग पदं कमल मनाऊँ | जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||
18. मोह नाश के लिए होय विवेक मोह भ्रम भागा | तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
19. प्रेम बढाने के लिए सब नर करहिं परस्पर प्रीती | चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||
20. प्रीति बढाने के लिए बैर न कर काह सन कोई | जासन बैर प्रीति कर सोई ||
21. सुख प्रप्ति के लिए अनुजन संयुत भोजन करही | देखि सकल जननी सुख भरहीं ||
22. भाई का प्रेम पाने के लिए सेवाहि सानुकूल सब भाई | राम चरण रति अति अधिकाई ||
23. बैर दूर करने के लिए बैर न कर काहू सन कोई | राम प्रताप विषमता खोई ||
24. मेल कराने के लिए गरल सुधा रिपु करही मिलाई | गोपद सिंधु अनल सितलाई ||
25. शत्रु नाश के लिए जाके सुमिरन ते रिपु नासा | नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||
26. रोजगार पाने के लिए विश्व भरण पोषण करि जोई | ताकर नाम भरत अस होई ||
27. इच्छा पूरी करने के लिए राम सदा सेवक रूचि राखी | वेद पुराण साधु सुर साखी ||
28. पाप विनाश के लिए पापी जाकर नाम सुमिरहीं | अति अपार भव भवसागर तरहीं ||
29. अल्प मृत्यु न होने के लिए अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा | सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||
30. दरिद्रता दूर के लिए नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना | नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ||
31. प्रभु दर्शन पाने के लिए अतिशय प्रीति देख रघुवीरा | प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||
32. शोक दूर करने के लिए नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी | आए जन्म फल होहिं विशोकी ||
33. क्षमा माँगने के लिए अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता | क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता।।
प्रभु के इन पदों को पढ़ने से ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है और परेशानियों से बचाव होता है ऐसी धारणा है।
Leave a Reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *